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18 या 19 को, कब मनाएं जन्माष्टमी? यहां जानें सही डेट, शुभ मुहूर्त और आरती

इस बार रक्षाबंधन की तरह जन्माष्टमी को लेकर दुविधा की स्थिति बनी हुई है कि आखिरकार जन्माष्टमी कब मनाई जाए। 18 या 19 अगस्त को। दरअसल हिंदू धर्म में कोई भी त्योहार या व्रत तिथि के आधार पर मनाई जाती है ऐसे में उदया तिथि में अंतर आने की वजह से व्रत-त्योहार में दिनों का फर्क हो जाता है। अष्टमी तिथि आज यानी 18 अगस्त को रात 9 बजकर 21 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं अष्टमी तिथि 19 अगस्त को रात 10 बजकर 59 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

कब मनाएं जन्माष्टमी आज या कल?

पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में आधी रात को मथुरा में हुआ था। ऐसे में भगवान के भक्त हर वर्ष इसी तिथि और माह पर बड़े ही उत्साह और जोश के साथ कान्हा का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस बार अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात के 9 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। जो 19 अगस्त को रात के करीब 10 बजकर मिनट पर समाप्त हो जाएगी। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को घनघोर रात के समय हुआ था ऐसे में कुथ विद्वान 18 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने को शुभ मान रहे हैं। वहीं 19 अगस्त को उदय तिथि है जिस कारण से बहुत से विद्वान 19 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाने की सलाह दे रहे हैं। 

जन्माष्टमी पर मेष,वृषभ, मिथुन और कर्क राशि वाले इन चीजों का भोग अर्पित करेंइस कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आप अपनी राशि के अनुसार कान्हा को भोग लगाकर प्रभु को प्रसन्न करें और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना का आशीर्वाद प्राप्त करें।

मेष राशि- इस राशि के जातकों को जन्माष्टमी पर कान्हा को लाल वस्त्र पहनाएं और माखन-मिश्री का भोग चढ़ाएं।

वृषभ राशि- इस राशि के लोग चांदी के वर्क से कान्हा की साज-सजावट करें और माखन का भोग लगाएं।

मिथुन राशि- आप कान्हा को दही का भोग लगाएं।कर्क राशि- कर्क राशि के लोग जन्माष्टमी के दिन दूध और केसर का भोग लगाए

जन्माष्टमी पर कान्हा को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों करें जाप

1- ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात
2- कृं कृष्णाय नमः
3- गोकुल नाथाय नमः
4- ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
5- ओम क्लीम कृष्णाय नमः
6- पंचामृत स्नान 
“पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु। शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
7-स्नान मंत्र
“गंगा, सरस्वती, रेवा, पयोष्णी, नर्मदाजलैः। स्नापितोअसि मया देव तथा शांति कुरुष्व मे।।

इस जन्माष्टमी पर बना शुभ योग

इस वर्ष जन्माष्टमी 18 और 19 अगस्त दो दिन मनाई जा रही है। 18 अगस्त,गुरुवार के दिन बहुत ही अच्छा शुभ योग का संयोग बन रहा है। इस दिन वृद्धि योग का संयोग है। इसके अलावा जन्माष्टमी पर अभिजीत मुहूर्त 18 अगस्त को 12 बजकर 05 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 56 मिनट तक रहेगा। 18 अगस्त की रात 08 बजकर 41 मिनट तक वृद्धि योग रहेगा। वहीं ध्रुव योग का भी संयोग 18 अगस्त का रात 08 बजकर 41 मिनट से 19 अगस्त की रात 08 बजकर 59 मिनट तक रहेगा।आज कब शुरू होगी भाद्रपद की अष्टमी तिथिहिंदू पंचांग के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और जन्मोत्सव का पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। रात्रि में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते हुए उनके जन्म का उत्सव बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। अष्टमी तिथि आज यानी 18 अगस्त को शाम 09 बजकर 21 मिनट से आरंभ हो जाएगी जो 19 अगस्त को रात के 10 बजकर 59 मिनट पर खत्म ।

गोकुल-वृंदावन जैसा नजारा

बाल गोपाल का बचपन गोकुल वृंदावन में बीता। यह जगह उनकी बहुत प्रिय है। नंदलाल ग्वाला थे, जो अपनी गायों को चराने जाते थे। माखन खाते थे और रासलीला करते थे। इस जन्माष्टमी पर आप उनके आसपास गोकुल वृंदावन का दृश्य बना सकते हैं। इसके लिए आप बाजार से कुछ खिलौने ले आएं। कृष्ण जन्माष्टमी पर बाजारों में मिट्टी की गाय, ग्वालिन, गोवर्धन पर्वत आदि खिलौने मिल जाएंगे, जिसे आप घर पर सजाकर जन्माष्टमी की झांकी तैयार कर सकते हैं।04:34 AM, 18-AUG-2022

रंगोली बनाएं

कृष्ण जन्माष्टमी पर आप घर के द्वार पर या मंदिर के आसपास रंगोली बना सकते हैं। रंगोली को शुभ माना जाता है। किसी भी पर्व में रंगोली बनाकर घर सजाने के साथ ही भगवान को आमंत्रित किया जाता है। इसलिए सुंदर रंगों और कलाकृति से रंगोली बनाकर घर सजा सकते हैं।

श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला 
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग,  मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।

जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू 
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू 

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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