सुरकुट पर्वत: जहां गिरा था मां सती का सिर
देहरादून।
देवभूमि में अनादिकाल से नारी शक्ति की पूजा की जाती है। देवभूमि पर्यटन स्थल के साथ ही आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र के साथ ही यहां अनगिनत धार्मिक स्थल हैं जहां नारी शक्ति की प्रतीक मां भगवती की पूजा, अर्चना की जाती हैं । इन्ही में से एक है नई टिहरी के जौनपुर ब्लाक के सुरकुट पर्वत पर स्थित सुरकंडा देवी का मंदिर। यह मंदिर माता दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है और 51 शक्ति पीठों में से एक है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष ने जब कनखल हरिद्वार में यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं दिया। इसके बावजूद माता सती यज्ञ में शामिल होने चली गईं। राजा दक्ष ने मेहमानों के सामने शिव का अपमान किया। सती शिव के अपमान से आहत होकर यज्ञ कुंड में कूद गईं। इसके बाद जैसे ही भगवान शिव ने यह वाक्य सुना वह क्रोधित हो गए और उन्होंने माता सती का बदला लिया उसके बाद सती का शव कुंड से निकाला और त्रिशूल में टांगकर आकाश में वियोग मेंं भटकने लगे। शिव के दुख के चलते सृष्टि में ठहराव आ गया। शिव को दुखी देखकर भगवान विष्णु ने चक्र से माता सती के शरीर को 51 टुकड़ों में खंडित कर दिया। शरीर खण्डित होने के बाद माता सती का सिर कटकर सुरकुट पर्वत पर जा गिरा। तभी से इस स्थान को सुरकंडा देवी के रूप में जाना जाता है। केदारखण्ड व स्कंद पुराण के अनुसार जब राजा इंद्र का राजपाट छीन गया तो उन्होंने सुरकुट पर्वत पर जाकर माता जगदम्बा की आराधना की और उनके आशीर्वाद से खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। एक और प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार चंबा जड़धार गाँव के युवक को माता ने बूढ़ी महिला के रूप में यहां साक्षात दर्शन दिए थे। कहा जाता है कि एक बार एक बूढ़ी औरत सुरकुंडा की ओर जा रही थीं । थकान होने पर उसने राहगीरों से सुरकुट पर्वत तक पहुंचाने के लिय मदद मांगी, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। इसके बाद वह एक युवक के पास पहुँची और उसने और उसने युवक से सुरकुट पर्वत तक पहुंचाने के लिए विवेचना की, युवक ने तुरन्त वृद्धा को कंडी में बैठाकर सुरकूट पर्वत तक पहुंचा दिया । इसके बाद बूढ़ी औरत ने युवक को साक्षात देवी रूप में प्रकट होकर उसे दर्शन दिया। सुरकंडा देवी मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली दी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष माना जाता है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता है। यहां से उत्तर में बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं और दक्षिण में देहरादून, हरिद्वार का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। यह एक मात्र ऐसा मन्दिर है, जहां से चार धामों की पर्वत श्रृंखलायें दिखाई देती हैं, जो कि अपने आप मेंं अदभुत है।