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जैविक कचरा है जानलेवा, फैल सकती हैं दस्त, मलेरिया, डेंगू, हैजा और टायफाइड जैसी बीमारियां

नई दिल्‍ली। भारत में ठोस अपशिष्ट का समुचित प्रबंधन न केवल पर्यावरण, बल्कि मानव स्वास्थ्य और परिवेश की सुंदरता के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गया है। जगह-जगह खड़े कचरे के ढेर न सिर्फ गांव, कस्बे और शहर की तस्वीर को बदरंग कर रहे हैं, बल्कि प्रदूषण और बीमारियां भी फैला रहे हैं। देश के किसी भी हिस्से में कूड़े का अंबार अपशिष्ट प्रबंधन के प्रति जागरूकता की कमी और जनसहभागिता के अभाव को प्रदर्शित करता है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली एक आदर्श और प्रगतिशील समाज की निशानी होती है। स्वच्छ भारत अभियान की सफलता भी इसी वैचारिकी पर टिकी है।

2011 की जनगणना के अनुसार, देश की एक तिहाई आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, यह आबादी हर दिन डेढ़ लाख मीटिक टन कचरा भी उत्पन्न करती है। चिंताजनक है कि देश में उत्पन्न कुल कचरे का आधा हिस्सा भी प्रसंस्कृत नहीं हो पाता है। कचरे का यह हिस्सा शहर के किनारे पहाड़ के रूप में परिणत हो जाता है और भूमि, वायु तथा जल प्रदूषण का कारण बनता है। जैविक कचरे का उचित निपटारा न किया जाए तो दस्त, मलेरिया, डेंगू, हैजा और टायफाइड जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा रहता है।

वहीं, अप्रसंस्कृत ठोस कचरा भू-संसाधन पर बोझ बन जाता है। कचरा उत्पन्न करना मानव समाज की स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन जरूरी यह है कि लोग इसके प्रबंधन के बारे में जानें और उसका हिस्सा बनें। अमूमन ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पांच चरणों में संपन्न होता है। पहले चरण में घरों में सूखे एवं गीले कचरे को पृथक करके रखा जाता है। दूसरे चरण में निगम की ओर से घर-घर जाकर कूड़ा संग्रहित किया जाता है। तीसरे चरण में सूखे कचरे में से पुनर्चक्रित होने योग्य वस्तुओं जैसे प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच आदि को छांटकर अलग किया जाता है।

चौथे चरण में अपशिष्ट प्रसंस्करण केंद्रों में कूड़े से खाद बनाने, बायो गैस निकालने, ऊर्जा उत्पादन करने, पुनर्चक्रित वस्तुएं बनाने का कार्य किया जाता है। पांचवें और अंतिम चरण में प्रसंस्करण के बाद बचे अपशिष्ट को भूमि में दबा दिया जाता है। एक कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली यह अपेक्षा करती है कि कूड़ा-करकट से अधिक से अधिक उपयोगी पदार्थो को निकाला जाए और कम से कम कूड़े को लैंडफिल किया जाए।

मप्र के इंदौर, महाराष्ट्र के पुणो और छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर ने अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता के मामले में देश में आदर्श प्रस्तुत कर मानक स्थापित किया है।ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली-2016 देश में कूड़ा उत्पन्न करने वालों की जिम्मेदारी को भी तय करती है। अपशिष्ट प्रबंधन में सभी लोगों की हिस्सेदारी अनिवार्य है। थोड़ी सी समझदारी दिखाकर प्रदूषण के फैलाव पर रोक लगाई और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

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