जानें सर्वपितृ अमावस्या का तर्पण मुहूर्त, श्राद्ध विधि और नियम से लेकर सब कुछ
नई दिल्ली: भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्वनी माह की अमावस्या तक रहने वाले पितृ पक्ष अमावस्या तिथि को श्राद्ध समाप्त होते हैं। यह श्राद्ध का 15वां दिन है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या/ महालया अमावस्या/ पितृ मोक्ष अमावस्या आदि नाम से जाना जाता है। गरुड़ पुराण में निहित है कि अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने पितरों को पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करना भूल जाता है, तो सर्वपिृत अमावस्या के दिन जलांजलि कर सकता है। इस दिन पितरों की पूजा करने से भी व्यक्ति को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः सर्वपिृत अमावस्या पर पितरों का अवश्य ही तर्पण करना चाहिए।धार्मिक मान्यता है कि पितरों की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं सर्वपितृ अमावस्या के श्राद्ध करम मुहूर्त,श्राद्ध विधि, नियम और उपाय से लेकर सब कुछ।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि व श्राद्ध कर्म मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर, शुक्रवार, रात्रि 09:50 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त:14 अक्टूबर , शनिवार, रात्रि 11:25 मिनट तक
श्राद्ध कर्म मुहूर्त
कुतुप मुहूर्त: 14 अक्टूबर 2023,प्रातः 11:45 से दोपहर 12:31
रौहिण मुहूर्त– 14 अक्टूबर 2023,दोपहर 12:31 से दोपहर 01:17
अपराह्न काल– 14 अक्टूबर 2023,दोपहर 01:17 से दोपहर -03:36\
सर्वपितृ अमावस्या के नियम
जब पितरों की देहावसान तिथि अज्ञात हो तो पितरों की शांति के लिए पितृ विसर्जन अमावस्या को श्राद्ध करने का नियम हैं।
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- आप सभी पितरों की तिथि याद नहीं रख सकते हैं, ऐसी दशा में भी पितृ विसर्जन अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए। यदि आप किसी कारणवश श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध नहीं निकाल पाए तो भी आप अमावस्या दिन श्राद्ध संपन्न कर सकते हैं।
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- इस दिन किसी सात्विक और विद्वान ब्राह्मण को घर पर निमंत्रित करें और उनसे भोजन करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें, स्नान करके शुद्ध मन से भोजन बनाएं, लेकिन भोजन सात्विक होना चाहिए।
- सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए।
- उसके उपरांत एक जल के लोटे में तिल डालकर दक्षिण मुखी होकर पितरों को जल अर्पित करना चाहिए।
- इसके पश्चात घर में श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिये भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए।
- इसके उपरांत आमंत्रित ब्राह्मण को भोजन करवायें और उन्हें दान दक्षिणा दें, उनका आशीर्वाद ले।
- अब श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिए, संध्या के समय सामर्थ्य के अनुसार, दो, पांच, नौ, अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या की श्राद्ध विधि
- सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें। साथ ही उसका पूरा फल पितरों को समर्पित करें।
- जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी लोगों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या पर ऐसा हो भोजन
- भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है।
- ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें,उसके उपंरात श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं।
- ब्राह्मण देव का तिलक करके, दक्षिणा देकर विदा करें।
- बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
सर्वपितृ अमावस्या पर करें ये उपाय
- शास्त्रों के अनुसार पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न रहते हैं। इस दिन पीपल के नीचे घी का दीपक जलाएं।
- इस दिन गाय की सेवा का भी बड़ा पुण्य प्राप्त होता है गौशाला में जाकर हरा चारा- गुड़ इत्यादि जरूर खिलाएं।
- इस दिन स्नान के बाद तर्पण इत्यादि विधि करते समय इस मंत्र का जाप करें “ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः”
- यह अमावस्या शनिवार को पड़ने की वजह से इसका महत्व बढ़ जाता है। इस दिन पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पीपल की 108 परिक्रमा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है।