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Chhath 2022: कल नहाय-खाय से शुरू होगा लोक आस्था का महापर्व छठ

गोरखपुर। लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। 29 अक्तूबर को खरना, 30 अक्तूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 31 को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ चार दिनों के पर्व का समापन होगा। दीपावली व गोवर्धन पूजा के बाद चार दिवसीय छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। दुकानों पर खरीदारों की भीड़ जुटने से बाजारों में रौनक दिखने लगी है। महानगर से लेकर गांवों तक घाटों व पोखरों की साफ-सफाई होने लगी है। दउरी बनाने वाले युद्ध स्तर पर जुटे हैं। व्यापारी विभिन्न प्रकार के फलों को मांगा रहे हैं।

संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है व्रत
ज्योर्तिविद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, छठ व्रत रोगों से मुक्ति, संतान के सुख और समृद्धि में वृद्धि के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत रखने से मनोकामना जरूर पूरी होती है। जिसकी मनोकामना पूरी होती है, वह कोसी भरते हैं। बहुत से लोग घाटों पर दंडवत पहुंचते हैं।

पहला दिन: नहाय खाय, 28 अक्तूबर
छठ महापर्व का आरंभ नहाय खाय से आरंभ होता है। 28 अक्टूबर को तृतीया तिथि दिन में 12 बजकर 29 मिनट, पश्चात चतुर्थी तिथि, अनुराधा नक्षत्र दिन में एक बजकर 25 मिनट पश्चात ज्येष्ठा नक्षत्र है। इस दिन रवियोग और सर्वार्थ सिद्धि योग, नामक दो सिद्धिकारी योग भी विद्यमान है। नहाय-खाय के अंतर्गत व्रती महिलाएं नदी, तालाब आदि में जाकर स्नान करेंगी। घर आकर खाना बनाएंगी। खाने में कद्दू व चावल बनाया जाता है। श्रद्धालु इसे कद्दू भात कहते हैं। नहाय खाय के दिन अरवा चावल, चने की दाल एवं कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। व्रतियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं।

दूसरा दिन : खरना 29 अक्तूबर
छठ पर्व का दूसर दिन खरना है। 29 अक्तूबर को चतुर्थी तिथि का मान 10 बजकर 28 मिनट, पश्चात पंचमी तिथि है। इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र दिन में 12 बजकर पांच मिनट तक, पश्चात मूल नक्षत्र और अतिगण्ड और सुकर्मा नामक योग है। इस दिन व्रती महिलाएं उपवास करेंगी। शाम को पूजा करने के उपरांत व्रत का पारण करेंगी। व्रत खोलने में नैवेद्य और प्रसाद का उपयोग करेंगी। दिनभर उपवास रखकर शाम तक सूर्य भगवान की पूजा करने के पश्चात खीर पूड़ी का भोग लगाकर हवन किया जाता है।

तीसरा दिन : संध्या अर्घ्य 30 अक्तूबर
यह छठ महापर्व का तीसरा दिन है। 30 अक्तूबर को पंचमी तिथि सुबह आठ बजकर 15 मिनट तक, पश्चात षष्ठी तिथि है। इस दिन मूल नक्षत्र दिन में 10 बजकर 34 मिनट तक पश्चिम पूर्वाषाढ़, सुकर्मा और सिद्धि नामक औदायिक योग है। इस दिन व्रती दिनभर व्रत रखकर अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी। शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को तालाब या नदी में अर्घ्य देंगी।

चौथा दिन : उगते हुए सूर्य को अर्घ्य 31 अक्तूबर
छठ महापर्व का अंतिम दिन 31 अक्तूबर को है। इस दिन सुबह आठ बजकर 56 मिनट तक पूर्वाषाढ़ और धृति योग है। चंद्रमा की स्थिति अपने परम मित्र बृहस्पति के राशि धनु पर रहेगा। इस दिन व्रती ब्रह्म मुहूर्त में नई अर्घ्य सामग्री लेकर जलाशय में खड़ी होकर अरुणोदय की प्रतीक्षा करेंगी। जैसे ही क्षितिज पर अरुणिमा दिखाई देगी, वह मंत्रोच्चार के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगी। इसके बाद वह व्रत का पारण करेंगी।

व्रत मात्र से मिलता है पूरा फल
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, वैसे तो हर पूजा व्रत में बहुत सी पूजन सामग्रियों का विधान है, लेकिन ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। सामग्री की व्यवस्था अपने सामर्थ्य के अनुसार ही की जा सकती है। कुछ न रहने पर व्रत मात्र से ही छठ के पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। पूजन बस विधि-विधान से सही और उचित होना चाहिए। सूर्य षष्ठी व्रत पूजन में गन्ना, नारियल, आम का पल्लव, पान, सुपारी, फल, लौंग, इलायची गुण, रुई, चौमुखी दिया, सूप, दउरा, रोली, साठी चावल, अगरबत्ती, कपूर, चूड़ा, सरसों तेल, आलता, नींबू बड़ा व छोटा, आटे का ठेकुआ, मूली, कद्दू, हल्दी, अदरक, सुथनी, पंचमेवा, देसी घी तथा सभी प्रकार के फलों का इस्तेमाल होता है।

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