दरअसल, एक जमाने में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना कर क्षत्रिय राजनीति का पूरा सिस्टम खड़ा कर रहे आनंद मोहन को आज भी बिहार की राजनीति में राजपूतों के बीच प्रभावी माना जाता है। वह कितने प्रभावी बचे हैं, यह 2024-25 के लोकसभा-विधानसभा चुनावों में पता चलेगा। वह किसके साथ रहते हैं, यह भी काफी हद तक निर्भर करेगा। इसके अलावा यह भी बड़ी बात है कि 1994 से 2005 के बीच का यह बिहार नहीं बचा है। तब और अब के युवाओं की मनोदशा में काफी अंतर है। राजनीतिक रूप से उर्वर बिहार में अब आनंद मोहन राजपूतों का वोट कितना घुमा सकेंगे, यह अभी तीर या तुक्का ही है।
आनंद मोहन के साथ कुल 27 को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। इनमें से एक की मौत पहले ही हो चुकी है। शेष 26 को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई और आनंद मोहन के पहले ही बहुत सारे छूट भी गए। कुछ तकनीकी कारणों से अभी रिहा नहीं हो सके हैं या उनकी रिहाई में वक्त भी लग सकता है। जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो छोड़े जा रहे इन 27 में 8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोयरी, एक कुर्मी, एक गंगोता और एक नोनिया जाति से हैं। जातीय जनगणना की प्रक्रिया के बीच इनकी जातियों की चर्चा भी गरम है, फिर भी काफी प्रयास के बावजूद 27 जेल से रिहा होने वालों में 2 की जाति का पता नहीं चल सका है।
सत्तासीन जाति के हिसाब से इनकी संख्या का गणित आप खुद समझें तो बेहतर।