Uncategorizedदेशधर्म-संस्कृति

महाअष्टमी आज, जानिए आयु के अनुसार कन्या का स्वरुप और मिलने वाला फल

नवरात्रि पर देवी दुर्गा के नौ रूपों की विशेष आराधना की जाती है। इन नौ दिनों में अष्टमी तिथि का विशेष महत्व होता है, इसे दु्र्गाष्टमी भी कहा जाता है। अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के अवसर पर आने वाली दुर्गा अष्टमी को महा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होती है। अष्टमी तिथि पर 2 से 10 साल की उम्र की नौ कन्याओं की पूजा,भोजन और उपहार देते हुए दुर्गा मां की पूजा की जाती है। मान्यता है 2 से 10 साल की उम्र तक की कन्याओं में मां दुर्गा का वास होता है। आइए जानते हैं कब है अष्टमी तिथि और क्या है इसका महत्व… 

शारदीय नवरात्रि 2022- कब है अष्टमी तिथि और शुभ योग
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की महादुर्गा अष्टमी 03 अक्तूबर को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार महाष्टमी तिथि 02 अक्तूबर की शाम को 06 बजकर 49 मिनट शुरू हो जाएगी। वहीं अष्टमी तिथि 03 अक्तूबर को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर खत्म हो जाएगी। उदय तिथि के आधार पर अष्टमी की पूजा 03 अक्तूबर को होगी। इसके अलावा दु्र्गा अष्टमी पर रवि और शोभन योग बन रहे हैं। ज्योतिष में इन दोनों योगों का बहुत ही शुभ और कल्याणकारी माना गया है। इस योग में पूजा और शुभ मांगलिक कार्य करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है।

दुर्गा महा अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त 2022
अक्टूबर 2, 2022 को 18:49 से अष्टमी आरम्भ
अक्टूबर 3, 2022 को 16:39 पर अष्टमी समाप्त

दुर्गा अष्टमी का महत्व 
– इस तिथि पर नवरात्रि पर देवी दु्र्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है। 
– महाष्टमी पर कन्या पूजन की जाती है जहां पर 02 से लेकल 10 साल की आयु की कन्यायों के पैर धोकर उनकी आरती करते हुए भोजन कराया जाता है।
– अष्टमी तिथि मां दु्र्गा की तिथि माना गई है। इस तिथि पर मां दुर्गा की पूजा और कन्या पूजन करने पर मां जल्दी प्रसन्न होती हैं।
– दुर्गा अष्टमी पर मां दु्र्गा के बड़े-बड़े पंडालों में दु्र्गा मां की विशेष आराधना की जाती है। 
– इस तिथि पर हवन भी किया जाता है। मान्यता है हवन करने से वातावरण और घर के आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त हो जाती है।

मंत्र-
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

आयु के अनुसार कन्या का स्वरुप और मिलने वाला फल-

दो वर्ष की कन्या-
दो साल की कन्या को कुमारी कहा गया है। इस स्वरूप के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है।
तीन वर्ष की कन्या-
तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा गया है। भगवती त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है।
चार वर्ष की कन्या-
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहा गया है। देवी कल्याणी के पूजन से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पांच वर्ष की कन्या-
पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी माना गया है। मां के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।
छह साल की कन्या-
इस उम्र की कन्या कालका देवी का रूप मानी जाती है। मां के कलिका स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान,बुद्धि,यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है।
सात वर्ष की कन्या-
सात वर्ष की कन्या मां चण्डिका का रूप है। इस स्वरूप की पूजा करने से धन,सुख और सभी तरह के ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है।
आठ वर्ष की कन्या-
आठ साल की कन्या मां शाम्भवी का स्वरूप है। इनकी पूजा करने से युद्ध,न्यायलय में विजय और यश की प्राप्ति होती है।
नौ वर्ष की कन्या-
इस उम्र की कन्या को साक्षात दुर्गा का स्वरूप मानते है। मां के इस स्वरूप की अर्चना करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती है,शत्रुओं का नाश होता है और कठिन से कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त होती है।
दस वर्ष की कन्या-
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के सामान मानी जाती हैं। देवी सुभद्रा स्वरूप की आराधना करने से सभी मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button