लोकसभा का चुनाव नहीं लडूंगाः प्रीतम
कांग्रेस में गुट बाजी कि खाई हो रही गहरी
कांग्रेस संगठन से खफा दिख रहे प्रीतम
देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी कि जो खाई है वह लगातार गहरी होती हुई दिखाई दे रही है। पिछले कई चुनाव हारने के बावजूद पार्टी के दिग्गज नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपने गुट को सर्वोपरि साबित करने में जी जान से लगे हुए हैं। हाल ही में पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने हरिद्वार से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो अब पूर्व पीसीसी अध्यक्ष व पूर्व नेता प्रतिपक्ष व वर्तमान में चकराता से विधायक प्रीतम सिंह ने टिहरी लोकसभा से चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। वर्ष 2019 में प्रीतम सिंह ने टिहरी से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वह जीत नहीं पाए थे। उल्लेखनीय है कि 2022 से पहले तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष रही डॉ. इंदिरा हिद्ेयश के निधन के बाद उस समय के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को हटाकर उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया था और उनके स्थान पर गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी, मगर चुनाव में मिली करारी हार के बाद, गणेश गोदियाल को भी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, तब प्रीतम सिंह को आशा थी की पार्टी या तो उनहे नेता प्रतिपक्ष बनाए रखेगी या फिर प्रदेश की कमान उनके हाथों में सौंपेगी, मगर कांग्रेस ने घर वापसी करने वाले यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बना दिया ओर प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी रानीखेत से चुनाव हारने वाले करन माहरा को दे दी गई। तभी से प्रीतम सिंह नाराज बताएं जा रहे हैं। बीच में कई बार प्रीतम सिंह व पूर्व सीएम हरीश रावत के बीच जुबानी जंग कई बार देखने को मिली है। हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के टिहरी प्रभारी बनाए जाने से भी प्रीतम सिंह नाराज बताए जा रहें है। प्रीतम सिंह के ताजा बयान ने कांग्रेस संगठन के माथे पर शिकन डाल दी है। पूर्व में टिहरी लोकसभा से विजय बहुगुणा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते थे, उन्के भाजपा में जाने के बाद प्रीतम सिंह को कांग्रेस ने यहां से मौका दिया था। विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय भी भाजपा में शामिल हो गये थे, अब इस सीट पर कांग्रेस के लिये नये प्रत्याशी को तलाशना आसान नही होगा।
विधानसभा अध्यक्ष का दोहरा आचरण आया सामनेः प्रीतम
देहरादून। चकराता से विधायक प्रीतम सिंह ने विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले के परिपेक्ष्य में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से गठित कोटिया कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2022 तक विधानसभा में हुई सभी नियुक्तियां अवैधानिक हैं, जिनमें विधानसभा भर्ती नियमावली, संविधान व आरक्षण की अनदेखी के साथ-साथ पदों के सापेक्ष शैक्षणिक योग्यता से भी समझौता किया गया है, लेकिन इन अवैधानिक भर्तियों के खिलाफ निर्णय लेने में विधानसभा अध्यक्ष का दोहरा आचरण समझ से परे है।