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स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता और साफ पेयजल की कमी गंभीर विषय

नई दिल्ली: बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उनका स्वस्थ परिवेश में पालन-पोषण किया जाना आवश्यक है। घर से लेकर स्कूल तक स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने के लिए विशेषज्ञ लगातार जोर देते रहे हैं, हालांकि कई देशों में यह अब भी बड़ा चैलेंज बना हुआ है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स इमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) ने संयुक्त रूप से चिंता जाहिर करते हुए कहा कि बच्चों के लिए स्वस्थ और समावेशी शिक्षण वातावरण मुहैया कराने के लिए दुनियाभर में कई स्कूल आवश्यक पैरामीटर्स को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। अस्वच्छता अब भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है जो सीधे तौर पर बच्चों के विकास और सेहत के लिए चुनौतीपू्र्ण हो सकता है।

यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ ने चिंता जताते हुए कहा है कि वैश्विक स्तर पर कई स्कूलों में बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाओं- जैसे साफ पानी और स्वच्छता व्यवस्था की कमी बनी हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि कम विकसित देशों के लिए यह चुनौती और भी बड़ी और गंभीर रही है। इससे बच्चों का स्वास्थ्य सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है जिस बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्कता है।

वैश्विक स्तर पर स्कूलों की स्थिति

यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की जॉइन्ट मॉनीटरिंग प्रोग्राम (जेएमपी) के आंकड़े बताते हैं, वैश्विक स्तर पर अब भी 29 प्रतिशत स्कूलों में बुनियादी पेयजल सेवाओं की कमी है, जिससे 546 मिलियन से अधिक स्कूली बच्चे प्रभावित हैं। 28 प्रतिशत स्कूलों में अभी भी बुनियादी स्वच्छता सेवाएं नहीं है जो 539 मिलियन स्कूली बच्चों को प्रभावित करती है। कम विकसित देशों में स्थिति और भी खराब है।

सब-सहारन अफ्रीका और ओशिनिया दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सेवाएं 50 प्रतिशत से भी कम हैं। सब-सहारन अफ्रीका क्षेत्र के ज्यादातर स्कूलों में बुनियादी पेयजल सेवाएं  बहुत मुश्किल से बच्चों को मिल पा रही हैं। 

भारत की स्थिति

भारत के स्कूलों में भी स्वच्छता और पेयजल को लेकर अब भी काफी प्रयास की आवश्यकता है, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इन सुविधाओं में काफी सुधार हुआ है। स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार 2018 के आंकड़ों के अनुसार, भारत के केवल 52.9 प्रतिशत स्कूलों में बच्चों के लिए बुनियादी स्वच्छता (पानी और साबुन से हाथ धोने की सुविधा) उपलब्ध है। पिछले कुछ वर्षों में इसमें सुधार जरूर देखा गया है। 90 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा में सुधार हुआ है। 77.8 प्रतिशत स्कूलों में बच्चों के लिए व्यवस्थित शौचालय उपलब्ध है। 

यूनिसेफ इंडिया के प्रमुख (वाटर एंड सेनेटाइजेशन) निकोलस ऑस्बर्ट कहते हैं, बच्चों की ज्यादातर स्वस्थ आदतें घर पर ही बनती हैं, पर स्कूलों में इन व्यवहारों का अभ्यास होता है। इसलिए स्कूलों का बुनियादी स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई से युक्त होना आवश्यक हो जाता है। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

यूनिसेफ वाश (वाटर, सेनेटाइजेशन एंड हाइजीन) की निदेशक केली एन नायलर कहती हैं, दुनियाभर में बहुत से बच्चे अब भी स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ शौचालय और हाथ धोने की उचित व्यवस्था के अभाव वाले स्कूलों में जाने के मजबूर हैं। विशेषकर ऐसे माहौल में जब कोविड के दौर में स्वच्छता प्रबंधन को लेकर विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की लगातार अपील की जाती रही है।

बच्चों की सेहत के साथ संक्रामक रोगों से उन्हें बचाने में स्कूलों का बुनियादी सेवाओं से लैस होना अति आवश्यक माना जाता है क्योंकि उनका ज्यादातर समय स्कूल परिसर में ही बीतता है। 

वातावरण और स्वच्छ पेयजल कीआवश्यकताओं को लेकर डब्ल्यूएचओ की निदेशक (डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरमेंट, क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ) डॉ मारिया नीरा कहती हैं, वाटर, सेनेटाइजेशन एंड हाइजीन न केवल संक्रामक रोगों  की रोकथाम के लिए आवश्यक है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और कल्याण के लिए भी यह एक आवश्यक शर्त है। स्कूल, बच्चों की स्वस्थ आदतों और व्यवहारों के निर्माण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का होना बहुत आवश्यक है। 

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